स्त्रियों की सहनशक्ति पुरुषों से कई गुनी ज्यादा है। पुरुष की सहनशक्ति न
के बराबर है। लेकिन पुरुष एक ही शक्ति का हिसाब लगाता रहता है, वह है
मसल्स की। क्योंकि वह बड़ा पत्थर उठा लेता है, इसलिए वह सोचता रहा है कि
मैं शक्तिशाली हूं। लेकिन बड़ा पत्थर अकेला आयाम अगर शक्ति का होता तो ठीक
है, सहनशीलता भी बड़ी शक्ति है- जीवन के दुखों को झेल जाना।
स्त्री अपने को नीचे रखती है। लोग गलत सोचते हैं कि पुरुषों ने स्त्रियों को दासी बना लिया। नहीं, स्त्री दासी बनने की कला है। मगर तुम्हें पता नहीं, उसकी कला बड़ी महत्वपूर्ण है। कोई पुरुष किसी स्त्री को दासी नहीं बनाता। दुनिया के किसी भी कोने में जब भी कोई स्त्री किसी पुरुष के प्रेम में पड़ती है,तत्क्षण अपने को दासी बना लेती है, क्योंकि दासी होना ही गहरी मालकियत है। वह जीवन का राज समझती है।
स्त्री अपने को चरणों में रखती है और तुमने देखा है कि जब भी कोई स्त्री अपने को तुम्हारे चरणों में रख देती है, तब अचानक तुम्हारे सिर पर ताज की तरह बैठ जाती है। रखती चरणों में है, पहुंच जाती है बहुत गहरे, बहुत ऊपर। तुम चौबीस घंटे उसी का चिंतन करने लगते हो। छोड़ देती है अपने को तुम्हारे चरणों में, तुम्हारी छाया बन जाती है। और तुम्हें पता भी नहीं चलता कि छाया तुम्हें चलाने लगती है, छाया के इशारे से तुम चलने लगते हो।
स्त्री अपने को नीचे रखती है। लोग गलत सोचते हैं कि पुरुषों ने स्त्रियों को दासी बना लिया। नहीं, स्त्री दासी बनने की कला है। मगर तुम्हें पता नहीं, उसकी कला बड़ी महत्वपूर्ण है। कोई पुरुष किसी स्त्री को दासी नहीं बनाता। दुनिया के किसी भी कोने में जब भी कोई स्त्री किसी पुरुष के प्रेम में पड़ती है,तत्क्षण अपने को दासी बना लेती है, क्योंकि दासी होना ही गहरी मालकियत है। वह जीवन का राज समझती है।
स्त्री अपने को चरणों में रखती है और तुमने देखा है कि जब भी कोई स्त्री अपने को तुम्हारे चरणों में रख देती है, तब अचानक तुम्हारे सिर पर ताज की तरह बैठ जाती है। रखती चरणों में है, पहुंच जाती है बहुत गहरे, बहुत ऊपर। तुम चौबीस घंटे उसी का चिंतन करने लगते हो। छोड़ देती है अपने को तुम्हारे चरणों में, तुम्हारी छाया बन जाती है। और तुम्हें पता भी नहीं चलता कि छाया तुम्हें चलाने लगती है, छाया के इशारे से तुम चलने लगते हो।
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