शनिवार, 15 जून 2013

बुरे हैं के भले हैं

यह फखर तो हासिल है, बुरे हैं के भले हैं
दो चार कदम हम भी तेरे साथ चले हैं,

जलना तो चिरागों का मुकद्दर है अज़ल से
यह दिल के कंवल हैं के बुझे हैं न जले हैं,

थे कितने सितारों के सिर-ए-शाम ही डूबे
हंगाम-ए-शहर कितने ही खुर्शीद ढले हैं,

जो झेल गये हंस के करी धुप के तेवर
तारों की ख़ुनक छाओं में वो लोग जले हैं,

एक शमा भुझाई तो कई और जला ली
हम गर्दिश-ए-दोरान से बड़ी चाल चले हैं ..!!

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