गुरुवार, 29 जनवरी 2015

अकेलेपन से मेरे दिल का शहर सुना था

अकेलेपन से मेरे दिल का शहर सुना था
न जाने कौन सी मंजिल थी जिसको छूना था,

नैना हस्ते रहे ..रैना ढ़लती रही
साये बढ़ते रहे ..सांस चलती रही,

सूखे सावन की बूंदों ने नहला दिया
फिर भी प्यासे का प्यासा है मोरा जिया,

इस उजाले में भी धुंधली तस्वीर है
इन सितारों की रात अपनी तकदीर है,

कैसी कुर्बत थी वो जिसने तनहा किया
साथ मेरे अकेला है मोरा पीया ..,

कैसे चैना मिले कैसे लागे जिया
रेज़ा-रेज़ा बिखरता है मोरा जिया.,

जलता बुझता हुआ ये जो संजोग है
अब यही है ख़ुशी अब यही रोग है.!!



मंगलवार, 27 जनवरी 2015

रविवार, 18 जनवरी 2015