अकेलेपन से मेरे दिल का शहर सुना था
न जाने कौन सी मंजिल थी जिसको छूना था,
नैना हस्ते रहे ..रैना ढ़लती रही
साये बढ़ते रहे ..सांस चलती रही,
सूखे सावन की बूंदों ने नहला दिया
फिर भी प्यासे का प्यासा है मोरा जिया,
न जाने कौन सी मंजिल थी जिसको छूना था,
नैना हस्ते रहे ..रैना ढ़लती रही
साये बढ़ते रहे ..सांस चलती रही,
सूखे सावन की बूंदों ने नहला दिया
फिर भी प्यासे का प्यासा है मोरा जिया,
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