सोमवार, 30 जून 2014

रिश्तों के सारे मंज़र चुप चाप देखती हूँ




रिश्तों के सारे मंज़र चुप चाप देखती हूँ,
हाथों में सबके खंजर चुप चाप देखती हूँ …!



होते हैं शायद नफ़रत में ही पक्के रिश्ते


 

होते हैं शायद नफ़रत में ही पक्के रिश्ते,


वरना अब तो तन से लिबास उतरने को मोहब्बत कहते हैं.. !

 

टिप्पणी करने वालों की कमी नहीं

सच यहाँ टिप्पणी करने वालों की कमी नहीं...... दरअसल, टिप्पणी करना, गलतियां निकलना और जगह जगह अपनी प्रतिक्रिया देना कुछ लोगों की आदत बन जाती है.... जो उनके अहं का ही एक रूप होता है....कोई भी जो अपने चिंतन को नियंत्रित नहीं कर पता, हर किसी पर टिप्पणी करने की वजह खोज निकलता है. मन का स्वभाव है कि वह खुद के सही और दूसरे के गलत होने को लेकर गोलबंदी करता रहता है.... सामने वाला क्या है, इससे अधिक जरुरी सवाल यह है कि आपकी तलाश क्या है? सोने की खुदाई में टनों मिट्टी हटानी होती है. अब अगर आप मिट्टी को देखने लगे तो सारा काम बेमोल लगेगा, लेकिन सोने को देखें, तो जान पाएंगे कि आपने मिट्टी के बीच क्या पाया है.... क्योकि आप वही पाते है जो आप पाना चाहते हैं ... अगर आको खुद को और दूसरों को महत्व देना है, तो बिना वजह किसी पर टिप्पणी हरगिज न करें, इसकी जगह आप जो चाहते हैं, वह तहज़ीब से अपने व्यवहार के जरिये सामने रखें...इस अहं को त्याग दें कि आप बेहतर है....... बस इतना करने भर से आप और बेहतर हो जायेंगे .....

जो चाहा वो मिल जाना सफलता है







जो  चाहा वो  मिल  जाना  सफलता  है....जो  मिला  उसको चाहना  प्रसन्नता  है....बीता हुआ कल मर चुका है, आने वाला कल अभी आया नहीं है। मेरे पास बस एक दिन है, और मैं इसमें खुश रहूंगी। मैं हमेशा के लिए जीना चाहती हूँ या इस कोशिश में मरना।