कुछ अजब शान से लोगों में रहा करते थे,
हम ख़फा रह के भी आपस में मिला करते थे,
इतनी तहज़ीब रह-ओ-रसम तो बाकी थी के वो,
लाख रंजिश सही वादा तो वफ़ा करते थे,
उनसे पूछा था कई बार मगर क्या कहिये,
हम मिज़जान्न ही परेशान रहा करते थे,
ख़तम था हम पे मोहब्बत का तमाशा गया,
रूह और जिस्म को हर रोज़ जुदा करते थे,
ज़िन्दगी हम से तेरे नाज़ उठाये न गए,
सांस लेने की फ़क़त रसम अदा करते थे,
हम बरस पड़ते थे अपनी ही तनहाई पर,
अब की तरह किसी दर से उठा करते थे .....!!!!
हम ख़फा रह के भी आपस में मिला करते थे,
इतनी तहज़ीब रह-ओ-रसम तो बाकी थी के वो,
लाख रंजिश सही वादा तो वफ़ा करते थे,
उनसे पूछा था कई बार मगर क्या कहिये,
हम मिज़जान्न ही परेशान रहा करते थे,
ख़तम था हम पे मोहब्बत का तमाशा गया,
रूह और जिस्म को हर रोज़ जुदा करते थे,
ज़िन्दगी हम से तेरे नाज़ उठाये न गए,
सांस लेने की फ़क़त रसम अदा करते थे,
हम बरस पड़ते थे अपनी ही तनहाई पर,
अब की तरह किसी दर से उठा करते थे .....!!!!
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