शनिवार, 18 जुलाई 2015

इधर कई दिनों से कुछ झुकाव तेरे सर में है

इधर कई दिनों से कुछ झुकाव तेरे सर में है,
है कौन ऐसा बा-असर के जिसके तू असर में है.

इसी लिए तो हम बहुत जियादा बोलते नहीं,
के बात चीत का मज़ा कलामे मुख़्तसर में है.

ज़रा जो मैं निडर हुआ तो फिर ये भेद भी खुला,
मुझे डराने वाला खुद भी दूसरों के डर में है.

मेरा सफीना गर्क होता देख कर हैरां है जो,
उसे पता नहीं कि उसकी नाव खुद भंवर में है.

मुझे भी उसकी जुस्तजू उसे भी मेरी आरज़ू,
मैं उसकी रहगुज़र में हूँ वो मेरी रहगुज़र में है.

अमीरे शहर को कहीं बता न देना भूल से,
कि मैं हूं खैरियत से और सुकून मेरे घर में है.!!




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