बुधवार, 29 जुलाई 2015
रविवार, 26 जुलाई 2015
जिस तरह 'पैर की मोच', 'छोटी सोच' हमें आगे नहीं बढ़ने देती
जिस तरह 'पैर की मोच', 'छोटी सोच' हमें आगे नहीं बढ़ने देती... उसी तरह 'टूटी कलम', 'दूसरों से जलन' स्वयं का 'भाग्य' नहीं लिखने देती!
हम सभी लोग जिंदगी में कुछ ऐसे अनुभवों से गुजरते हैं
हम सभी लोग जिंदगी में कुछ ऐसे अनुभवों से गुजरते हैं, जिनकी वजह से बहुत से बदलाव आते हैं... और उसके बाद हम कभी भी फिर से वैसे इंसान नहीं बन सकते, जैसे कभी हुआ करते थे... खैर कोई बात नहीं ......चीजें बदल जाती हैं, लोग बदल जाते हैं... अतीत को मत भूलिए, अच्छी यादों को सहेजिए... जीना इसी का नाम है.
किसी चीज़ के प्रति सम्मान दिखाने का ढोंग करने से बेहतर है
किसी चीज़ के प्रति सम्मान दिखाने का ढोंग करने से बेहतर है कि आप बेखौफ होकर अपनी बात रखें... क्योकि जो आप वाकई महसूस करते हैं, उसे बताने की तुलना में चुप रहना और मुस्कुराना हमेशा आसान होता है।
खुद मेँ झाँकने के लिए जिगर चाहिए
खुद मेँ झाँकने के लिए जिगर चाहिए...दूसरों की शिनाख्त मेँ तो हर शख़्स माहिर है.
शुक्रवार, 24 जुलाई 2015
गुरुवार, 23 जुलाई 2015
शनिवार, 18 जुलाई 2015
इधर कई दिनों से कुछ झुकाव तेरे सर में है
इधर कई दिनों से कुछ झुकाव तेरे सर में है,
है कौन ऐसा बा-असर के जिसके तू असर में है.
इसी लिए तो हम बहुत जियादा बोलते नहीं,
के बात चीत का मज़ा कलामे मुख़्तसर में है.
ज़रा जो मैं निडर हुआ तो फिर ये भेद भी खुला,
मुझे डराने वाला खुद भी दूसरों के डर में है.
मेरा सफीना गर्क होता देख कर हैरां है जो,
उसे पता नहीं कि उसकी नाव खुद भंवर में है.
मुझे भी उसकी जुस्तजू उसे भी मेरी आरज़ू,
मैं उसकी रहगुज़र में हूँ वो मेरी रहगुज़र में है.
अमीरे शहर को कहीं बता न देना भूल से,
कि मैं हूं खैरियत से और सुकून मेरे घर में है.!!
है कौन ऐसा बा-असर के जिसके तू असर में है.
इसी लिए तो हम बहुत जियादा बोलते नहीं,
के बात चीत का मज़ा कलामे मुख़्तसर में है.
ज़रा जो मैं निडर हुआ तो फिर ये भेद भी खुला,
मुझे डराने वाला खुद भी दूसरों के डर में है.
मेरा सफीना गर्क होता देख कर हैरां है जो,
उसे पता नहीं कि उसकी नाव खुद भंवर में है.
मुझे भी उसकी जुस्तजू उसे भी मेरी आरज़ू,
मैं उसकी रहगुज़र में हूँ वो मेरी रहगुज़र में है.
अमीरे शहर को कहीं बता न देना भूल से,
कि मैं हूं खैरियत से और सुकून मेरे घर में है.!!
शुक्रवार, 17 जुलाई 2015
बुधवार, 15 जुलाई 2015
विकास का चेहरा या मुखौटा
सच कहू तो विकास का चेहरा या मुखौटा को पूरा पढ़ते -पढ़ते उस गुब्बारे की हवा निकल जाती है जिसे पिछले कुछ समय से भाजपा नेता, कार्यकर्त्ता और मीडिया का एक हिस्सा फुलाने में लगा हुआ है...... केंद्र की सरकार काम कर रही है.... अच्छी बात है ..सरकारें काम करने के लिए ही आती हैं.इसमें ऐसी कोई बात नहीं है जिसके लिए मोदी या उनके नेतृत्व की हर वक्त तारीफ़ की जाए... लेकिन मीडिया, खासकर टीवी मीडिया का एक बड़ा तबका ऐसा ही कर रहा हैं ..हर वक्त तारीफ़ ..हर बात पर तारीफ़ ..मोदी सरकार के रणनीतिकारों और भाजपा के नेताओं को यह समझना होगा कि जब तारीफें काम से ज्यादा होने लगती हैं तो जनता में गुस्सा पनपने लगता है ...इसी तरह के गुस्से की वजह से अटल बिहारी वाजपयी दोबारा सत्ता में नहीं लौट पाए थे.
सोमवार, 13 जुलाई 2015
गुरुवार, 9 जुलाई 2015
बुधवार, 8 जुलाई 2015
सोमवार, 6 जुलाई 2015
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