मैं दहशतगर्द था मरने पे बेटा बोल सकता
है
हुकूमत के इशारे पे तो मुर्दा बोल सकता
है,
यहाँ पर नफरतों ने कैसे गुल खिलाये हैं
लुटी अस्मत बता देगी दुपट्टा बोल सकता
है,
हुकूमत की तवज्जो चाहती है ये जली
बस्ती
अदालत पूछना चाहे तो मलवा बोल सकता है,
कई चेहरे अभी तक मुंहजबानी याद है इसको
कहीं तुम पूछ मत लेना गूंगा बोल सकता
है,
बहुत सी कुर्सियां इस मुल्क में लाशों
पे रखी हैं
ये वो सच है जिसे झूठे से झूठा बोल
सकता है,
सियासत की कसौटी पर परखिये मत वफ़ादारी
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