गुरुवार, 20 फ़रवरी 2014

तुझमे झांकती हूँ में सबसे नज़रें बचा कर

तुझमे झांकती हूँ में सबसे नज़रें बचा कर
बेचैन हो रही हूँ क्यों तेरी पनाहों में आ कर,

क्या ढूँढती हूँ जाने क्या चीज खो गई है
इन्सान हूँ शायद मोहब्बत हो गई......!!


 

1 टिप्पणी:

  1. आप की कहानी कुछ मुझ जैसी ही लगती है ।
    आपकी हर शायरी में दर्द दिखता है

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