गुनगुनाते हुए आँचल
की हवा दे मुझको
अपने घर के किसी
कोने से लगा दे मुझको,
डूबते-डूबते आवाज़
तेरी सुन जाऊं
आखरी बार तू साहिल
से सदा दे मुझको,
मैं तेरे हिज्र में
चुप चाप न मर जाऊं कहीं
मैं हूँ सकते में
कभी आ के रुला दे मुझको,
लोग कहते है के ये इश्क निगल जाता है
मैं भी इस इश्क में आया हूँ, दुआ दे मुझको,
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