रविवार, 23 मार्च 2014

उन्होने जाते जाते बडे गुरुर से कहा था

उन्होने जाते जाते बडे गुरुर से कहा था,
"तुम जैसे तो बहुत मिलेंगे..."

हमने भी मुस्कुराके पुछ ही लिया,
"हमारे जैसा ही क्यु चाहिये..."....


गुरुवार, 20 मार्च 2014

जो जाग जाते हैं, उनके प्रेम का नाम प्रार्थना है।

सोये रहने वाले के लिए जिस तरह सिर्फ सुबह हो जाने से ही कुछ नहीं होता, उसी तरह प्रेम हो जाने भर से ही कुछ नहीं होता। प्रेम में होकर भी लोग चूक जाते हैं। मंदिर के दरवाजे तक आ-आकर लोग मुड़ जाते हैं, सीढि़यां चढ़-चढ़कर लौट जाते हैं। प्रेम तो जीवन में बहुत बार होता है, मगर बहुत थोड़े ही लोग खुशकिस्मत होते हैं, जो जागते हैं। जो जाग जाते हैं, उनके प्रेम का नाम प्रार्थना है। जागे हुए प्रेम का नाम प्रार्थना है, जबकि सोई हुई प्रार्थना का नाम प्रेम है.....वह सब जो आप कर रहे हैं, अगर उसमें प्रेम नहीं है, तो सब झूठा और बकवास है। लेकिन वह सब जो प्रेममय है, वह सब सत्य है। प्रेम की राह पर आप जो कुछ करते हो, वह आपकी चेतना को विकसित करता है। आपको अधिक सत्य देता है और अधिक सच्चा बनाता है। हर चीज प्रेम के पीछे छिपी हुई होती है, क्योंकि प्रेम हर चीज की सुरक्षा कर सकता है। प्रेम इतना सुंदर है कि कुरूप चीज भी इसके भीतर छिप सकती है और सुंदर होने का ढोंग कर सकती है।

गुरुवार, 20 फ़रवरी 2014

तुझमे झांकती हूँ में सबसे नज़रें बचा कर

तुझमे झांकती हूँ में सबसे नज़रें बचा कर
बेचैन हो रही हूँ क्यों तेरी पनाहों में आ कर,

क्या ढूँढती हूँ जाने क्या चीज खो गई है
इन्सान हूँ शायद मोहब्बत हो गई......!!


 

घर कितने हैँ मुझे ये बता, मकान बहुत हैँ

घर कितने हैँ मुझे ये बता, मकान बहुत हैँ।
इंसानियत कितनो मेँ है, इंसान बहुत हैँ॥
 

मुझे दोस्तोँ की कभी, जरूरत नहीँ रही।
दुश्मन मेरे रहे मुझ पे, मेहरबान बहुत हैँ॥
 

दुनिया की रौनकोँ पे न जा,झूठ है, धोखा है।
बीमार, भूखे, नंगे,बेजुबान बहुत हैँ॥
 

कितना भी लुटोँ धन,कभी पुरे नहीँ होँगे।
निश्चित है उम्र हरेक की,अरमान बहुत हैँ॥


हाथ पकड़ ले अब भी तेरा हो सकता हूँ मैं

हाथ पकड़ ले अब भी तेरा हो सकता हूँ मैं
भीड़ बहुत है, इस मेले में खो सकता हूँ मैं
 

पीछे छूटे साथी मुझको याद आ जाते हैं
वरना दौड़ में सबसे आगे हो सकता हूँ मैं
 

कब समझेंगे जिनकी ख़ातिर फूल बिछाता हूँ
इन रस्तों पर कांटे भी तो बो सकता हूँ मैं
 

इक छोटा-सा बच्चा मुझ में अब तक ज़िंदा है
छोटी छोटी बात पे अब भी रो सकता हूँ मैं
 

सन्नाटे में दहशत हर पल गूँजा करती है
इस जंगल में चैन से कैसे सो सकता हूँ मैं
 

सोच-समझ कर चट्टानों से उलझा हूँ वरना
बहती गंगा में हाथों को धो सकता हूँ...!!