रविवार, 15 सितंबर 2013

कुछ भी नहीं

सोचा नहीं अच्छा बुरा , देखा सुना कुछ भी नहीं
माँगा खुदा से हर वक़्त, तेरे सिवा कुछ भी नहीं

देखा तुझे चाह तुझे, सोचा तुझे पूजा तुझे
मेरी वफ़ा मेरी खता, तेरी खता कुछ भी नहीं

जिस पर हमारी आँख ने, मोती बिछाये रात भर
भेजा वही कागज़ उसे, हम ने लिखा कुछ भी नहीं

और एक शाम की देहलीज़ पर, बैठे रहे वो देर तक
आँखों से की बातें बहुत, मुंह से कहा कुछ भी नहीं

दो - चार दिन की बात है, दिल ख़ाक में मिल जयेगा
आग पर जब कागज़ रखा, बाकी बचा कुछ भी नहीं ......!!!!

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