शनिवार, 14 फ़रवरी 2015
गुरुवार, 5 फ़रवरी 2015
गुरुवार, 29 जनवरी 2015
अकेलेपन से मेरे दिल का शहर सुना था
अकेलेपन से मेरे दिल का शहर सुना था
न जाने कौन सी मंजिल थी जिसको छूना था,
नैना हस्ते रहे ..रैना ढ़लती रही
साये बढ़ते रहे ..सांस चलती रही,
सूखे सावन की बूंदों ने नहला दिया
फिर भी प्यासे का प्यासा है मोरा जिया,
न जाने कौन सी मंजिल थी जिसको छूना था,
नैना हस्ते रहे ..रैना ढ़लती रही
साये बढ़ते रहे ..सांस चलती रही,
सूखे सावन की बूंदों ने नहला दिया
फिर भी प्यासे का प्यासा है मोरा जिया,
मंगलवार, 27 जनवरी 2015
रविवार, 18 जनवरी 2015
सदस्यता लें
संदेश (Atom)