घर कितने हैँ मुझे ये बता, मकान बहुत हैँ।
इंसानियत कितनो मेँ है, इंसान बहुत हैँ॥
मुझे दोस्तोँ की कभी, जरूरत नहीँ रही।
दुश्मन मेरे रहे मुझ पे, मेहरबान बहुत हैँ॥
दुनिया की रौनकोँ पे न जा,झूठ है, धोखा है।
बीमार, भूखे, नंगे,बेजुबान बहुत हैँ॥
कितना भी लुटोँ धन,कभी पुरे नहीँ होँगे।
निश्चित है उम्र हरेक की,अरमान बहुत हैँ॥
इंसानियत कितनो मेँ है, इंसान बहुत हैँ॥
मुझे दोस्तोँ की कभी, जरूरत नहीँ रही।
दुश्मन मेरे रहे मुझ पे, मेहरबान बहुत हैँ॥
दुनिया की रौनकोँ पे न जा,झूठ है, धोखा है।
बीमार, भूखे, नंगे,बेजुबान बहुत हैँ॥
कितना भी लुटोँ धन,कभी पुरे नहीँ होँगे।
निश्चित है उम्र हरेक की,अरमान बहुत हैँ॥