रविवार, 15 सितंबर 2013

उलझोगे तभी सुलझोगे

उलझोगे तभी सुलझोगे
और बिखरोगे तभी निखरोगे...!!!


Arpana Singh Parashar

किसी को माफ़ कर दिया

  • क्षमा करने का मतलब है जो बीत गया उसे जाने देना । कोई वहां तक माफ़ कर सकता है जहाँ तक वो प्यार करता है , अपने दुश्मनों को हमेशा माफ़ कर दीजिये – उन्हें इससे अधिक और कुछ नहीं परेशान कर सकता है। क्षमा करना कार्यवाही और स्वतंत्रता के लिए महत्त्वपूर्ण है जो खुद को माफ़ नहीं कर सकता वो हमेशा अप्रसन्न रहता है । सामजिक होना मतलब माफ़ करने वाला होना है, माफ़ करने का मतलब किसी कैदी को आज़ाद करना है और ये जानना है कि आप ही वो कैदी थे । बिना क्षमा के कोई प्रेम नहीं है , और बिना प्रेम के कोई क्षमा नहीं है। जब आप किसी को माफ़ करते हैं तब आप भूत को नहीं बदलते हैं – लेकिन आप निश्चित रूप से भविष्य को बदल देते हैं । औरों में बहुत कुछ क्षमा कर दीजिये खुद में कुछ भी नहीं । अपने दुश्मनों को क्षमा कर दीजिये , पर कभी उनके नाम मत भूलिए क्षमा एक ऐसा उपहार है जो हम स्वयं को देते हैं माफ़ करना बहादुरों का गुण है । क्षमा विश्वास की तरह है आपको इसे जीवित रखे रहना होता है क्षमा प्रेम का अंतिम रूप है, अक्सर क्षमा माँगना , अनुमति मांगने से आसान होता है । दूसरों की गलतियों के लिए क्षमा करना बहुत आसान है लेकिन उन्हें अपनी गलतियाँ देखने पर क्षमा करने के लिए कहीं अधिक साहस की आवश्यकता होती है । क्षमा वो खुशबू है जो फूल उन पैरों पर बिखेरता है जिसने उसे कुचल दिया हो । वो जो दूसरों को क्षमा नहीं कर सकता वो उस पुल को तोड़ देता है जिसे उसे पार करना था क्योंकि हर व्यक्ति को क्षमा पाने की आवश्यकता होती है । मानवता कभी उतनी सुन्दर नहीं होती जितना की जब वो क्षमा के लिए प्रार्थना करती है , या जब किसी को क्षमा करती है , कभी भी अपने पास रखे तीन संसाधनों को मत भूलिए : प्रेम , प्रार्थना , और क्षमा.................. ।

रिश्ते निभाते निभाते

कितने दूर निकल गये रिश्ते निभाते निभाते ,
खुद को खो दिया हमने अपनों को पाते पाते ,
लोग कहते है दर्द है मेरे दिल में,
और हम थक गये मुस्कुराते मुस्कुराते,,,.....!!!

कुछ भी नहीं

सोचा नहीं अच्छा बुरा , देखा सुना कुछ भी नहीं
माँगा खुदा से हर वक़्त, तेरे सिवा कुछ भी नहीं

देखा तुझे चाह तुझे, सोचा तुझे पूजा तुझे
मेरी वफ़ा मेरी खता, तेरी खता कुछ भी नहीं

जिस पर हमारी आँख ने, मोती बिछाये रात भर
भेजा वही कागज़ उसे, हम ने लिखा कुछ भी नहीं

और एक शाम की देहलीज़ पर, बैठे रहे वो देर तक
आँखों से की बातें बहुत, मुंह से कहा कुछ भी नहीं

दो - चार दिन की बात है, दिल ख़ाक में मिल जयेगा
आग पर जब कागज़ रखा, बाकी बचा कुछ भी नहीं ......!!!!

दिल जीत लें वो नज़र

दिल जीत लें वो नज़र हम भी रखते हैं,
भीड़ में भी आयें नज़र वो असर हम भी रखते हैं,
यूँ तो वादा किया है किसी से हरदम मुस्कुराने का
वरना इन आँखों में समंदर हम भी रखते हैं ......!!!!