मेरी ख़ामोशी में सन्नाटा भी है शोर भी है.. ,
तूने देखा ही नहीं .. अा़ँखों में कुछ अौर भी है..,
अपने दिल की ईद को दरकिनार न कर,
भूख गर जब्त से बाहर हो तो रोज़ा कैसा..!!
जब भरोसा टूटता है तो माफी के कोई मायने नहीं होते..
गांव छोड़ के शहर आये थे,
फिक्र वहां भी थी फ़िक्र यहां भी है,
वहां तो सिर्फ 'फसलें' ही खतरे में थीं.
यहां तो पूरी 'नस्लें' ही खतरे में है..!!
मैं “किसी से” बेहतर करुं
क्या फर्क पड़ता है!
मै “किसी का” बेहतर करूं
बहुत फर्क पड़ता है!