आप
अपनेँ बारे मेँ क्या सोचते है? खुद के लिये आप क्या राय स्वयँ पर जाहिर
करते हैँ? क्या आप अपनेँ आपको ठीक तरह से समझ पाते हैँ?..... इन सारी चीजोँ
को ही हम indirect रूप से आत्मसम्मान कहते हैँ ....दुसरे लोग हमारे बारे
मेँ क्या सोचते हैँ ये बाते उतनी मायनेँ नहीँ रखती या कहेँ तो कुछ भी
मायनेँ नहीँ रखती लेकिन आप अपनेँ बारे मेँ क्या राय जाहिर करते हैँ, क्या
सोचते हैँ ये बात बहूत ही ज्यादा मायनेँ रखती है....
लेकिन एक बात तय है कि हम अपनेँ बारे मेँ जो भी सोँचते हैँ, उसका एहसास
जानेँ अनजानेँ मेँ दुसरोँ को भी करा ही देते हैँ और इसमेँ कोई भी शक नहीँ
कि इसी कारण की वजह से दूसरे लोग भी हमारे साथ उसी ढंग से पेश आते हैँ...
याद रखेँ कि आत्म-सम्मान की वजह से ही हमारे अंदर प्रेरणा पैदा होती है या
कहेँ तो हम आत्मप्रेरित होते हैँ..... इसलिए जरुरी है कि हम अपनेँ बारे
मेँ एक श्रेष्ठ राय बनाएं।
सोमवार, 5 मई 2014
रविवार, 13 अप्रैल 2014
दुनिया को समझाया हमने लेकिन खुद अनजान रहे
दुनिया को समझाया हमने लेकिन खुद अनजान रहे
अपने तन पर अपना कुरता अक्सर ढीला हो जाता है,
आईने को घर में रख दो, साथ में ले कर मत घूमो
सच की धूप में रहते-रहते चेहरा नीला हो जाता है,
बच्चों के सच्चे ज़हनों में झूठी बातें मत डालो
काँटों की सोहबत में रह कर फूल भी नुकीला हो जाता है,
दिन भर तो हम मिलकर शक्कर में पानी घोलें
रात आते-आते सारा शरबत क्यों ज़हरीला हो जाता है.....!!
अपने तन पर अपना कुरता अक्सर ढीला हो जाता है,
आईने को घर में रख दो, साथ में ले कर मत घूमो
सच की धूप में रहते-रहते चेहरा नीला हो जाता है,
बच्चों के सच्चे ज़हनों में झूठी बातें मत डालो
काँटों की सोहबत में रह कर फूल भी नुकीला हो जाता है,
दिन भर तो हम मिलकर शक्कर में पानी घोलें
रात आते-आते सारा शरबत क्यों ज़हरीला हो जाता है.....!!
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